Wednesday, January 14, 2009

जिंदगी एक दौड़

जिंदगी की दौड़ में मैं दौड़ता जा रहा हूँ , दौड़ता जा रहा हूँ मैंने कभी किसी की ऊँगली पकड़ कर दौड़ने में मदद नही की, पर किसी को धक्का देकर गिराया भी नहीं, हाँ ....रास्तेमें अगर कोई थका हुआ दिखा तो दो पल रुककर उस्से समझाया " साथी रुको मत और दौड़ते रहो न दौड़ने से कुछ खोने को तो नहीं है पैर रुक जाने से कुछ पाने को भी नहीं है झूँठा आश्वाशन मैं नहीं देता की मंजिल पास है , मंजिल बहुत दूर है और तुझे दौड़ना है तू रुक सकता है पैर बस चाँद सांसे लेने के लिए " ......ज़ब भी मेरी बातें सांसें सुनकर कोई उठ दौड़ा , मैं भी दुगनी गति से दौड़ा

हेर अगले मोंड पैर खड़े लोग मुझे विजेता लगते रहे , पैर उस मोंड पर पहुँच कर न तो वोह लोग मुझे विजेता लगे और न मैं ख़ुद ही कुछ दिखा तो बस अगला मोंड हेर मोंड पैर लगा की बस अगला मोंड ही मंजिल है मुझे शिकायत नहीं हैं इन मोंदो से बल्कि अब तो इनके बिना कुछ अधूरा सा लगता है पर एक दुआ है की हेर मोंड पैर नए चेहरे तो दीखते रहें पैर कोई न कोई ऐसा चेहरा भी दीखता रहे जो मुझे कभी किसी मोंड पैर मिला था

3 comments:

Thoughts_Uniterrupted said...

very true...thats what life is all about..bas ek sahara chahiye hota hai

Sumit said...

wah wah wah....

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

dil se seddha nikla hua thought. This is real you man!! :)Great work..